Saturday 18 March 2017

बीत गयी वो भोर

Woman Accepts Christ After 'Pleasant' Atheism

फिर वो भोर देखनी है
किरणों से घर रोशन होता था
जब कोयल राग सुनाती थी
कू-कू करके बच्चे उसके पीछे-पीछे गाते थे
वो अम्मा मंदिर से आती थी
और सुबह-सुबह ही जंगले से 
सबकी राम-राम हो जाती थी
चिरैया और गिलहरियाँ साथ कलेवा खाती थी
चूँ-चूँ  चीं-चीं की बातें मन को लुभाती थी
छकलते हुए  पानी की आवाज़
एक ऊर्जा मन में दे जाती थी
वो पानी में सूरज की किरणें
सब सोनेसा कर जाती थी
पत्तों पर जब ओस की बूंदे
मोती सी दिखलाती थी
छत पर वो पेड़ो की छांव में 
फुर्सत के पल बिताती थी
प्रेम से गुदगुदाते पल
कागज़ पर उकेर जाती थी।
फिर वो भोर देखनी है।