कुछ टूटी थी वो पहले से,
आज और थोड़ा वो टूट गई
वो माटी की गुड़िया सी
कल उनसे ,आज तुमसे छूट गयी
कुछ रूठी थी किस्मत से,
आज और थोड़ा सा रूठ गई
कांच की बरनी भरी सपनों से
गिरी हाथ से फूट गई
तिनकों से न बने महल हैं
कल तक न थी सूझ कोई
चली हवा जब उड़ाती तिनके
आज सब कुछ वो बूझ गई।